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सारण्य महोत्सव के तत्वावधान में महान दानवीर शिरोमणि भामाशाह की जयन्ती अन्तर्राष्ट्रीय कार्यालय में बड़े धूमधाम से मनाई गई। दानवीर भामाशाह के तैलचित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया।
सारण्य महोत्सव महासचिव श्याम बिहारी अग्रवाल ने सभा को संबोधित करते हुए कहा मातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम और दानवीरता के लिए भामाशाह का नाम इतिहास में अमर है। भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ था। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप को उन्होंने अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा अर्पित कर दी। यह सहयोग तब दिया जब महाराणा प्रताप अपना अस्तित्व बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाड़ियों में छिपते भटक रहे थे। मेवाड़ की अस्मिता की रक्षा के लिए दिल्ली गद्दी का प्रलोभन भी भामाशाह जी ने ठुकरा दिया था। महाराणा प्रताप को दी गई उनकी सहायता ने मेवाड़ के आत्म सम्मान एवं संघर्ष को नई दिशा दी।
सारण्य महोत्सव अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश राज ने अपने सम्बोधन में कहा भामाशाह अद्वितीय दानवीर एवं त्यागी महापुरुष थे। आत्म सम्मान और त्याग की यही भावना आपको स्वदेश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने वाले देश-भक्त के रुप में शिखर पर स्थापित कर देती है। आज भी धन अर्पित करने वाले किसी भी दान दाता को भामाशाह कहकर उसका स्मरण-वंदन किया जाता है। भामाशाह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के बलिदान के साथ उनका दान अनंत काल तक अमर रहेगा।
शिक्षाविद रामदयाल शर्मा ने कहा दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में 29 अप्रैल, 1547 को रणथम्भौर क़िले के क़िलेदार भारमल जी के यहाँ हुआ था। जो राणा साँगा के विश्वासपात्र थे। अपने पूर्वजों की तरह भामाशाह भी मेवाड़ के राजा के सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे। अपरिग्रह को जीवन का मूलमंत्र मानकर संग्रहण की प्रवृत्ति से दूर रहने की चेतना जगाने में भामाशाह सदैव अग्रणी थे। उन्हें अपनी मातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम था। दानवीरता में वे कर्ण के समान थे।
डाॅ सम्पूर्णा नन्द सिंह ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्त्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ था। मेवाड़ के इस वृद्ध मंत्री ने अपने जीवन में पूर्वजों की संपदा के अलावा भी कई राजाओं से भी अधिक धन संपदा अर्जित की थी। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए तथा महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद, उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए भामाशाह ने अपनी कमाई हुई सम्पूर्ण धन-संपदा के साथ अपने पूर्वजों के खजाने को भी महाराणा प्रताप कोअर्पित कर दिया। माना जाता है कि यह सम्पत्ति इतनी अधिक थी कि उससे तेरह वर्षों तक २५,००० सैनिकों का सपरिवार खर्चा पूरा किया जा सकता था।
कार्यक्रम का संचालन श्याम बिहारी अग्रवाल ने किया। आगत अतिथियों का स्वागत डाॅ देवेश कुमार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन ई विनोद सिंह ने किया। कार्यक्रम में शिक्षाविद रामदयाल शर्मा, चन्द्र प्रकाश राज, श्याम बिहारी अग्रवाल, शशिभूषण प्रसाद, डाॅ देवेश कुमार, डाॅ सम्पूर्णा नन्द सिंह, ई विनोद कुमार सिंह, आनन्द वर्मा आदि ने उपस्थित होकर दानवीर भामाशाह को श्रद्धान्जली अर्पित किया।