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बड़हरा।भोजपुर।बड़हरा विधानसभा क्षेत्र के खजुरिया गांव में आयोजित पांच दिवसीय श्री लक्ष्मीनारायण यज्ञ पूजन ,हवन व पूर्णाहित के साथ सम्पन्न हुआ था । यज्ञ के समापन के दिन भारी संख्या में महिला ,पुरुष श्रद्धालुओं ने पुजा अर्चना कर यज्ञ मंडप का परिक्रमा किया । इस दौरान यज्ञ समिति की ओर से भव्य भंडारा का आयोजन किया गया था । जिसमें हजारों के संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया । यज्ञ समाप्ति के दिन भव्य भंडारे में शामिल होने के लिए दूर दराज के श्रद्धालुओं के अलावा चर्चित समाजसेवी व गणमान्य लोग पहुंचे हुए थे । जो आयोजित यज्ञ को सफल बनाने एवं भंडारे में प्रसाद आदि वितरण करने में इस कार्य में जुटे लोगों को मदद पहुंचा रहे थे । धर्म और धार्मिक कार्यों में इन सभी की रुचि को देख लोग हतप्रभ थे । श्री जीयर स्वामी जी के सानिध्य में आयोजित श्री लक्ष्मीनारायण यज्ञ में उच्चारण हो रहे वैदिक मंत्रोचारण से आसपास का पूरा ग्रामीण परिवेश भक्तिमय हो गया था । यज्ञ के अंतिम दिन प्रवचन करते हुए स्वामी जी ने कहा की राजा एवं प्रजा दोनों भोगते हैं एक-दूसरे के कर्मों का परिणाम मनुवादिता के सिद्धान्त से ही संचालित होती है। मानवता मन नहीं, बुद्धि और विवेक से लें कोई निर्णय मानव जीवन पर अन्न और संग का गहरा प्रभाव होता है। हम जैसा अन्न ग्रहण करते हैं वैसा मन बनता है। जैसी संगति करते हैं, वैसा आचरण होता है। इसलिए दुष्टों का अन्न और संग दोनों विनाशकारी होता है।
श्री जीयर स्वामी जी ने श्रीमद् भागवत महापुराण कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अधर्म, अनीति और अन्याय के सहारे कुछ समय के लिये समाज में वर्चस्व कायम किया जा सकता है, लेकिन यह स्थाई नहीं हो सकता। नीति, न्याय और सत्य ही स्थायित्व देता है। श्री स्वामी ने कहा कि भीष्म पितामह 58 दिनों से वाण-शैया पर लेटे थे। उन्हें याद कर कृष्ण की आँखों में आँसू आ गये। युधिष्ठिर ने आँसू का कारण पूछा। कृष्ण ने कहा कि कुरू वंश का सूर्य अस्ताचलगामी हैं। उनके दर्शन किया जाय। द्रौपदी सहित पाँचों पाण्डव वहाँ पहुँचे। श्री कृष्ण के आग्रह पर भीष्म राजधर्म और राजनीति का उपदेश देने लगे। द्रौपदी मुस्कुरा दी। भीष्म ने मुस्कुराने का राज पूछा। द्रौपदी ने कहा कि आज आप उपदेश दे रहे हैं कि 'अन्याय नहीं करना चाहिए। अन्यायी का साथ नहीं देना चाहिए और अन्याय होते देखना नहीं चाहिए। चीर-हरण के वक्त आपकी यह नीति और धर्म कहाँ थे?' भीष्म ने कहा कि उस वक्त अन्न और संग के दोष का मुझ पर प्रभाव था। मनुष्य अर्थ (वित्त) का दास होता है। अर्थ किसी का दास नहीं होता। उन दिनों में दुर्योधन के अर्थ से पल रहा था। गलत लोगों का अन्न और संग ग्रहण नहीं करना चाहिए। धीर और वीर पुरूष को भाग्यवादी नहीं, कर्मवादी हो।