दुर्गा सप्तसती में वर्णित राजा सूरथ को स्वयं दर्शन देने प्रकट हुई थी मां अंबिका भवानी।

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सारण।आमी नवरात्रि मे सिद्ध पीठ मां अम्बिका भवानी के दरबार मे प्रातःकाल से हीं जन शैलाव उमर रहा है।पांचवे दिन स्कंदमाता स्वरुप मां अम्बिका के दर्शन के लिए प्रातः आरती के पूर्व से हीं भक्तों की कतारें देखी जा रही है।यहां सालो भर भक्तों से दरबार मे रौनक बना रहता है।नवरात्रि आने पर तो यहां आस्था का जनसैलाब उमरने लगता है।मां के तृशक्ति महाकाली,महालक्ष्मी व महासरस्वती के समन्वित रुप मे चीरकालीन मनोकामना पूर्णि मां अम्बिका आमी मे विराजमान हैं।बच्चे से लेकर बुढे तक हर दिशा के हजारो लोग यहां नवरात्रि पाठ करते है। सिर्फ सारण हीं नही अपितु बिहार व अन्य प्रान्तो के भक्त भीं नवरात्र मे मां का दर्शन करने आते है।

     नवरात्रि मे नौ दिनों तक मां की अलग-अलग स्वरुपों की रात्रिकालीन सोलह श्रृंगार होती है।यह श्रृंगार दर्शन व पूजन इतना अद्भुत होता है कि संध्याकाल से हीं मन्दिर परिसर भक्तों से पटने लगता है।मां के रात्रिकालीन आरती में दो आरती की ज्योत एक सांथ जलती है। यह सनातन संस्कृति की पहली व आखरी शक्ति स्थल है जहां आदिकाल से नवरात्रि मे दो आरती की ज्योत दो पुजारियों द्वारा संयुक्त रुप से जलाई जाती है।

- आदि कालीन है मां अम्बिका के मिट्टी की पिण्डी।

धन,बल व विद्या के रुप मे विराजमान मां अम्बिका भवानी के मिट्टी की पिण्डी का प्रादुर्भाव आदिकाल से से इसकी पुष्टि विज्ञान भीं कर चुका है।आज आमी मन्दिर के पूजेरी गणेश तिवारी ने बताया की मां अम्बिका भवानी के मिट्टी की पिण्डी आदि मानव के विकास काल की है।भारतीय पुरातत्व विभाग नें अम्बिका भवानी के मिट्टी की जांच करी तो बताया कि यह मिट्टी आदि कालीन है।यह स्थल इतना पवित्र व जागृत है की यहां सभीं तरह की सिद्धि प्रदान करने वाली सिद्धिदात्री मां अम्बिका देवी विराजमान हैं।यहीं से 51 शक्तिपीठ की उत्पत्ति हुई थी।आमी मे ही राजा सूरथ और वैश्य ने मिट्टी की प्रतिमा स्थापित कर नित्य पूजा कर तपस्या शुरु किया।इन दोनो के कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर आमी मे दुर्गा देवी प्रकट हुई थी।तभी से यह स्थान दिव्य स्थल बन गया।जो भक्त मां अम्बिका के दरबार मे पहुंचता है उसका नंगा पांव मां के स्थल पर परते हीं समस्त नकारात्मक उर्जा यह पावन तपो भूमि अपने अंदर खींच लेती है और उस भक्त का तन और मन निर्मल बन जाता है।