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- गंगा महाआरती के बाद लोक गीतों और नृत्य की प्रस्तुति।
डोरीगंज सारण जिले के ऐतिहासिक स्थल चिरांद स्थित बंगाली बाबा घाट पर ज्येष्ठ पूर्णिमा के पावन अवसर पर आयोजित गंगा महाआरती की शाम लोक-संस्कृति और भक्ति संगीत के रंगों से सराबोर हो उठी। हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में आयोजित सांस्कृतिक संध्या ने घाट परिसर को एक जीवंत रंगमंच में तब्दील कर दिया, जहां भोजपुरी संस्कृति, संस्कार गीतों और लोक गायकी की अनूठी छटा देखने को मिली।
कार्यक्रम की शुरुआत सत्यम कला मंच द्वारा प्रस्तुत भक्ति और लोक संस्कार गीतों से हुई, जिनका संकलन और निर्देशन प्रदीप सौरभ एवं धनंजय मिश्रा ने किया। मंच पर जैसे ही रानी चौधरी, अनुष्का कश्यप, रवि राज, मनोज मयंक और प्रदीप सौरभ ने अपनी-अपनी प्रस्तुतियाँ दीं, श्रद्धालुओं की भीड़ से तालियों की गूंज उठने लगी। लोगों की भावनाएं गीतों से जुड़ती चली गईं, और पूरा माहौल भक्तिरस में डूब गया।
संगीत संयोजन की बात करें तो अमलेन्दू मिश्रा ने तबले पर अपने हुनर का ऐसा जादू बिखेरा कि श्रोताओं की आत्मा तक झंकृत हो उठी। वहीं धनंजय मिश्रा ने हारमोनियम पर अपनी उंगलियों से सुरों को साधते हुए भावनाओं को संगीत में ढाल दिया। दोनों कलाकारों की युगलबंदी ने प्रस्तुति को दिव्यता की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया।
नृत्य निर्देशन का जिम्मा संभाला राहुल और नारायण जी ने, जिनके निर्देशन में कलाकारों ने गीतों की आत्मा को अपने नृत्य में उकेर दिया। मनीषा और उनकी टीम द्वारा प्रस्तुत संस्कार गीतों की भाव-भंगिमा इतनी सजीव रही कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठे। हैप्पी श्रीवास्तव के गंगा गीत कार्यक्रम के दौरान बार-बार तालियों की गड़गड़ाहट, "हर हर गंगे" और "गंगा मैया की जय" के उद्घोषों से पूरा घाट क्षेत्र गूंज उठा। भीषण गर्मी के बावजूद घाट की सीढ़ियों से लेकर नदी के किनारों तक श्रद्धालुओं की भीड़ ने अनुशासनपूर्वक बैठकर पूरा कार्यक्रम देखा और संस्कृति तथा भक्ति के इस मेल से जुड़कर खुद को धन्य समझा।
गंगा महाआरती सह गंगा बचाओ संकल्प समारोह की आयोजक चिरांद विकास परिषद के सचिव श्रीराम तिवारी ने बताया कि संस्कृति और संस्कार दोनों ही मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग हैं। संस्कृति समाज में प्रचलित रीति-रिवाजों, परंपराओं, मूल्यों और मान्यताओं का एक समूह है।
संस्कार व्यक्ति के जीवन के महत्वपूर्ण चरणों जैसे जन्म, विवाह, मृत्यु आदि को दर्शाने वाले अनुष्ठान या रस्म हैं।
ये अनुष्ठान न केवल स्थिति में बदलाव का संकेत देते हैं, बल्कि व्यक्तिगत और सामूहिक पहचान को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
संस्कारों का उद्देश्य व्यक्ति को समाज के लिए तैयार करना और उसे सही रास्ते पर चलाना है। कि यह संध्या सिर्फ एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि गंगा के प्रति श्रद्धा, लोक परंपराओं के प्रति सम्मान और सामाजिक सौहार्द का अनुपम उदाहरण बन गई। आयोजकों ने बताया कि हर वर्ष की तरह यह आयोजन दिव्य और सफल रहा और इस तरह के आयोजन आगे भी हर वर्ष और भव्य रूप में होंगे ताकि चिरांद की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को नई ऊर्जा मिलती रहे।