गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय जीवन दर्शन की आत्मा- प्रो. प्रमेंन्द्र कुमार बाजपेई।

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गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर इतिहास विभाग जय प्रकाश विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कुलपति प्रो. प्रमेंन्द्र कुमार बाजपेई ने कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय जीवन दर्शन की आत्मा हैं।

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान अत्यंत उच्च और आदरणीय रहा है। गुरु केवल एक शिक्षक नहीं, बल्कि जीवन पथ के मार्गदर्शक, संस्कारों के संवाहक और आत्मबोध के प्रेरक माने जाते हैं। वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक भारत की शिक्षा और संस्कृति का केंद्रबिंदु गुरु रहा है, जिसने समाज को न केवल ज्ञान दिया, बल्कि विचार और जीवन जीने की कला भी सिखाई। भारतीय परंपरा में कहा गया है

"आचार्याद्धयं शिष्यं वेदं आदत्ते स चाचार्यत्वं याति।" अर्थात् गुरु केवल वेद पढ़ाते नहीं, बल्कि उसे जीकर शिष्य को उसकी आत्मा तक पहुँचाते हैं। गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय जीवन दर्शन की आत्मा रही है। संस्कार, श्रद्धा और अनुशासन इस परंपरा की आधारशिला रहे हैं। ऋषि वशिष्ठ और राम, द्रोणाचार्य और अर्जुन, चाणक्य और चंद्रगुप्त जैसे संबंधों ने केवल ऐतिहासिक घटनाएँ नहीं रचीं, बल्कि मूल्यनिष्ठ नेतृत्व और चरित्र निर्माण के आदर्श प्रस्तुत किए। गुरु का कार्य केवल जानकारी देना नहीं है, बल्कि शिष्य के अंतर्मन को जागृत करना, उसे सही और गलत की पहचान कराना, तथा जीवन के आदर्शों की ओर ले जाना है। इसलिए गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप मानते हुए, भारतीय समाज में 'गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः' जैसे श्लोकों से सम्मानित किया गया। गुरु पूर्णिमा, जो महर्षि वेदव्यास के जन्मदिवस पर मनाई जाती है, इस परंपरा की महत्ता को रेखांकित करती है। यह पर्व हमें गुरु के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का अवसर देता है और आत्मचिंतन का भी समय होता है कि क्या हम अपने अंदर के शिष्य को जीवित रख पा रहे हैं?

आज जब शिक्षा प्रणाली डिजिटल और यंत्रनिष्ठ होती जा रही है, तब गुरु का स्थान और भी महत्वपूर्ण हो गया है। तकनीक ज्ञान दे सकती है, पर दृष्टि और विवेक केवल एक जीवंत गुरु ही दे सकता है।भारतीय संस्कृति में गुरु न केवल ज्ञानदाता हैं, बल्कि जीवन के सारथी हैं, जो शिष्य को उसकी आत्म-प्राप्ति की ओर अग्रसर करते हैं।

कार्यक्रम का संचालन इतिहास विभाग के शोधार्थी एवं निवर्तमान छात्र संघ अध्यक्ष रजनीकांत सिंह ने किया जबकि आभार प्रभाकर कुमार ने किया। इस कार्यक्रम में प्रो सईद रज़ा, प्रो सुधीर कुमार सिंह, प्रो कृष्ण कन्हैया, के अतिरिक्त 70 शोधार्थी और विद्यार्थी सम्मिलित हुए।