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- कोविड- 19 संक्रमण काल के दौरान कोरेंटिन सेंटर और जांच सहित दियारा क्षेत्रों के ग्रामीणों का टीकाकरण में अपनी जिम्मेदारियों को शत प्रतिशत सुनिश्चित कराने में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका:
- विगत 17 वर्षो से जिले के विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों में ग्रामीणों को कर रही हूं सेवा: अंजू कुमारी।
- साल के 8 महीने 8 किलोमीटर दूर का सफर तय करना मजबूरी नहीं बल्कि जरूरी: एएनएम।
छपरा, 11 मई वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण काल की बातें या चर्चाएं शुरू होती है। तो आम से लेकर खास तक की जुबां पर स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सकों एवं नर्सों का ख्याल सबसे पहले आ जाता है। क्योंकि इन्हीं लोगों के बदौलत न जाने कितनों की जिंदगियां वापस लौटी होगी। अनुमंडलीय अस्पताल सोनपुर की उपाधीक्षक सह प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ पूनम कुमारी का कहना है कि कोरोना संक्रमण काल के दौरान अपनी जिंदगी की चिंता छोड़ कोविड- 19 टीकाकरण में अपनी जिम्मेदारियों को शत-प्रतिशत सुनिश्चित करने में स्थानीय अस्पताल की एएनएम अंजू कुमारी आगे रहीं है। क्योंकि कोरोना संक्रमण काल के दौरान एएनएम स्कूल में कोरोंटाइन सेंटर में चौबीसों घंटे रह कर अपने कर्तव्यों को बखूबी निभायी है। हालांकि इसके अलावा कोरोना जांच के साथ ही पंजीकरण की जिम्मेदारियों का डट कर सामना किया है। वहीं जब 15 जनवरी 2021 को टीकाकरण की शुरुआत हुई तो सोनपुर के कसमर पंचायत अंतर्गत दियारा जैसे दुर्गम क्षेत्रों में जाकर शत-प्रतिशत टीकाकरण जैसे कार्यो में महती भूमिका निभायी हैं।
- कोविड- 19 संक्रमण काल के दौरान कोरेंटिन सेंटर और जांच सहित दियारा क्षेत्रों के ग्रामीणों को टीकाकरण में अपनी जिम्मेदारियों को शत प्रतिशत सुनिश्चित कराने में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका: सिविल सर्जन।
सिविल सर्जन डॉ सागर दुलाल सिन्हा ने कहा कि चिकित्सकीय सहायता प्रदान करने में चिकित्सकों के अलावा स्वास्थ्य केंद्रों में कार्यरत एएनएम, जीएनएम सहित कई अन्य कर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इनके सार्थक प्रयास से ही अस्पतालों में इलाज़रत मरीज जल्द स्वस्थ होकर अपने घर जाते हैं। स्वास्थ्य केंद्रों में कार्यरत नर्स रोगियों के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका को सार्थक रूप देने का काम करती है। एक अच्छी नर्स के द्वारा मरीज़ों का लगातार ध्यान देना उतना ही महत्वपूर्ण होता है, जितना कि एक विशेषज्ञ सर्जन के द्वारा किसी भी ऑपरेशन के दौरान अपनी जिम्मेदारियों को निभाया जाना होता है। हालांकि आने वाले वर्षों में वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने के लिए नर्सिंग सेवा से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। मनोबल बढ़ाने के लिए नर्सिंग सेवा से जुड़ी एएनएम या स्टाफ नर्स को उत्कृष्ट कार्यों को लेकर समय- समय पर प्रोत्साहित किया जाता है।
- विगत 17 वर्षो से जिले के विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों में ग्रामीणों की कर रही हूं सेवा: अंजू कुमारी।
नालंदा जिले के नगरनौसा प्रखंड की रहने वाली एएनएम अंजू कुमारी ने बताया कि सबसे पहले अक्तूबर 2008 में सोनपुर के शाहपुर दियारा स्थित स्वास्थ्य केंद्र में अस्थायी तौर पर आई थी। उसके बाद दिसंबर 2009 में मांझी, जून 2010 में सोनपुर, दिसंबर 2017 में नगरा और अक्तूबर 2019 में स्थायी रूप से सेवा देने के लिए गड़खा में पदस्थापित हुई। लेकिन कोरोना संक्रमण काल के दौरान जून 2020 में स्थानांतरित होकर सोनपुर वापस आ गई। कोरोना काल जब धीरे- धीरे कम हुआ तो सोनपुर के कसमर पंचायत के 10 वार्ड कसमर का तो तीन वार्ड गंगा नदी से दक्षिण छितरचक के ग्रामीणों की सेवा करने के लिए स्थायी रूप से कार्य कर रही हूं। एएनएम अंजू कुमारी के अनुसार जून 2010 से लेकर दिसंबर 2017 तक सेवाएं देने के बाद इसी जिले के दूसरे स्वास्थ्य संस्थान स्थानांतरण हो गया था लेकिन जब वैश्विक स्तर पर कोरोना संक्रमण का दौर आया तो जून 2020 में पुनः मेरा स्थानांतरण सोनपुर के कसमर जैसे क्षेत्र में कर दिया गया। उसके बाद से लेकर अनवरत क्षेत्रीय लोगों के साथ कार्य करने का मौका मिला है।
- साल के 8 महीने 8 किलोमीटर दूर का सफर तय करना मजबूरी नही बल्कि जरूरी: एएनएम।
एएनएम अंजू कुमारी ने बताया कि कोरोना संक्रमण काल के दौरान 16 अगस्त 2020 को झंडातोलन के बाद मेरा तबियत खराब होने लगा तो कोविड- 19 जांच के बाद मुझे संक्रमित पाया गया था। उसके बाद किराए के मकान में रहने लगी तो मेरी एक बेटी और एक बेटा भी कोरोना सक्रमित हो गया। जिस कारण मुझे बहुत ज्यादा झेलना पड़ा था। क्योंकि कोरोना संक्रमण काल के दौरान पूरा परिवार मेरे पास ही आ गया था। कसमर पंचायत का तीन वार्ड गंगा नदी के उस पार यानी दक्षिणी भाग में पड़ता है। जहां के ग्रामीण कहा करते हैं कि आपसे पहले यहां कोई भी एएनएम दीदी नही आती थी जिस कारण टीकाकरण तो दूर की बात है। किसी भी प्रकार की बीमारी का इलाज या टीकाकरण कराने के लिए पटना जिला का रुख करना पड़ता था। तीन वार्ड के लोगों के स्वास्थ्य लाभ दिलाने या अपने कर्तव्यों का अक्षरशः पालन करती आ रही हूं। हालांकि उस पार जाने के लिए पैदल के अलावा कोई साधन ही नही है लेकिन इसके बावजूद वहां जाकर टीकाकृत करने का काम करती हूं। साल के 8 महीने 8 किलोमीटर दूर का सफर तय करना मजबूरी नही बल्कि जरूरी होता है। क्योंकि 4 महीने तो बरसात के कारण रास्ता बंद ही रहता है।